ग़ैरतमंद भाइयों का मज़ाक़ मत बनाओ

ग़ैरतमंद भाइयों का मज़ाक़ मत बनाओ



इश्क़ क़ातिल से भी, मक़तूल से हमदर्दी भी
ये बता किस से मुहब्बत की जज़ा माँगेगा?
सज्दा ख़ालिक़ को भी, इब्लीस से याराना भी
हश्र में किस से अक़ीदत का सिला माँगेगा?

     सारी दुनिया का मुसलमान इस वक़्त इस्राईली उत्पादों के बहिष्कार के लिए सरगर्म है क्योंकि इस्राईली कंपनियाँ हमसे हासिल होने वाले मुनाफ़े को हमारे भाइयों के क़त्लेआम में इस्तेमाल कर रही हैं।
ऐसे में पड़ोसी मुल्क में जारी क्रिकेट लीग से यह शर्मनाक तस्वीर सामने आई।
उत्पादों के बहिष्कार में सबसे ऊपर कोका कोला, पेप्सी ब्रांड को रखा गया है लेकिन पाकिस्तानी सूफ़ी क्रिकेटर मोहम्मद रिज़वान सीने पर पेप्सी का लोगो लगाए, बाजू पर केएफसी का विज्ञापन चिपकाए हुए यह ऐलान कर रहे हैं कि हमारे हर छक्के और हिट पर ग़ज़्ज़ा के मज़लूमों को एक लाख रुपये की इमदाद होगी।
पहली बात यह कि छक्के आपसे लगते नहीं। दूसरी बात जो काबिले फ़हम है वह यह कि इन मज़लूम, दिलेर जानबाज़ों को तुम्हारे पैसों की ज़रूरत नहीं है, वह तुमसे भीख नहीं माँग रहे, उनको हमारे तआव्वुन की ज़रूरत है, उनको अपनी लड़ाई में हमारी ज़रूरत है, अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो उनके क़त्ल के असबाब भी न फ़राहम करें। कमाल करते हो साहब! ग़ज़्ज़ा की आबादी लगभग ख़ात्मे के दहाने पर है, वहाँ मौजूद मलबे में इंसानी हड्डियों के अंबार हैं, एक तरफ़ आप इन कंपनियों को मज़बूत करके उनके क़त्लेआम का इंतेज़ाम कर रहे हो, दूसरी तरफ़ उनके लिए इमदाद का ऐलान करके अहदा बुरा हो रहे हो। जब वहाँ इंसानी जानें बाक़ी नहीं रहेंगी तो तुम्हारी इमदाद कौन लेगा?
दूसरी बात - आप क्रिकेट खेलिए, पैसे कमाइए, घर जाइए, दुनिया आपसे कुछ नहीं कहेगी। लेकिन ग़ज़्ज़ा के इन जानबाज़, ईमानी हमियत और ईमानी ग़ैरत से सरशार मुसलमानों की ग़ैरत को मत नीलाम कीजिए। खेल के बाद आप स्टेडियम में खड़े होकर इस तरह दुआ करते हैं गोया सफ़ा व मरवा की सई के बाद आप काबा-तुल्लाह के सामने उनके लिए दुआ कर रहे हों।
हम और आप से मज़बूत उनकी दुआएँ हैं, ख़ुदा ने उनसे जन्नत भरने का फ़ैसला किया है शायद, उनका ईमान ऐसा क़वी और बेमिसाल है कि हमें अपने ईमान पर शर्म महसूस होती है।
मगर इस तरह उनके क़त्ल के लिए असबाब मुहैया करके उनको इमदाद का लॉलीपॉप दिखाना और स्टेडियम में खड़े होकर इस तरह तमाशा लगाना मुनासिब नहीं है। सारी दुनिया आपको देख रही है।
कम अज़ कम ग़ज़्ज़ा के ग़ैरतमंद भाइयों का मज़ाक़ मत बनाओ!

लेखक:  - इकरमा सुलैमान

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