हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की क़ौम सूअर और बंदर क्यों बनी?

क्या आप जानते हैं? हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की क़ौम सूअर और बंदर क्यों बनी?



यह एक शिक्षाप्रद घटना है जिसका उल्लेख पवित्र कुरान में किया गया है।

हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के समय में बनी इस्राईल के लोगों के लिए शनिवार का दिन विशेष रूप से निर्धारित किया गया था। अल्लाह पाक ने उन पर यह आदेश नाज़िल फ़रमाया था कि इस दिन वे सांसारिक कार्यों से दूर रहें और केवल इबादत करें। विशेष रूप से मछली के शिकार पर पाबंदी लगा दी गई थी।

लेकिन, नाज़रीन! आज़माइश का समय आया।

शनिवार के दिन मछलियाँ नदी में इतनी अधिक संख्या में दिखाई देती थीं, मानो वे स्वयं आकर पकड़वाना चाहती हों, जबकि अन्य दिनों में उनकी संख्या कम हो जाती थी। यह अल्लाह पाक की ओर से उनकी परीक्षा थी।

परंतु कुछ लोगों ने शनिवार के दिन जाल लगाए और रविवार को मछलियाँ पकड़ीं। उन्होंने सोचा कि शायद वे अल्लाह पाक को धोखा दे सकेंगे। हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने उन्हें बार-बार समझाया, लेकिन नाफ़रमानी करने वाले बाज़ नहीं आए।

धीरे-धीरे यह क़ौम तीन समूहों में बँट गई। पहला समूह वह था जो शिकार करता रहा और अल्लाह पाक के आदेश की अवहेलना करता रहा।

दूसरा समूह सब कुछ तमाशाई बनकर देखता रहा।

तीसरा समूह न केवल स्वयं बचा रहा, बल्कि नाफ़रमानों को रोकता और उन्हें नसीहत देता रहा। अंततः अल्लाह पाक का अज़ाब आ गया। एक सुबह जब नाफ़रमान जागे तो उनकी शक्लें बंदर और सूअर में बदल चुकी थीं। तीन दिन तक वे इसी हालत में तड़पते रहे।

फिर अल्लाह पाक ने उन्हें नष्ट कर दिया।

जबकि जो लोग खामोश थे या जो नाफ़रमानों को रोक रहे थे, अल्लाह पाक ने उन पर रहम फ़रमाया और उन्हें अज़ाब से सुरक्षित रखा।

नाज़रीन: याद रखें, आज के ज़माने में जो बंदर और सूअर हैं, वे उन लोगों की नस्ल नहीं हैं, बल्कि यह अपनी एक अलग ही प्राणी प्रजाति है। लेकिन यह घटना हमारे लिए एक बहुत बड़ी सीख है कि अल्लाह पाक के आदेशों को कभी भी मामूली नहीं समझना चाहिए। नाफ़रमानी का परिणाम दुनिया और आख़िरत दोनों में विनाशकारी है। 

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